छत्तीसगढ़:-जब धरती पर हरियाली हो तब समझिए, सिन्धी समाज में उत्सवों का मौसम आ चुका है। जब बारिश की बूंदें धरती की प्यास बुझाती हैं और खेतों में हरियाली फूटने लगती है। तब सिन्धी समाज में ट्रीजड़ी का पर्व जीवन की नई शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।
आज के आधुनिकीकरण के दौर में जब तकनीकी विकास सामाजिक परंपराओं को लील रहा है, तब ट्रीजड़ी जैसे पर्व स्मरण कराते हैं कि सिन्धी समाज की असली पहचान उसकी संस्कृति और उसके रीति-रिवाजों में आज़ भी सुरक्षित है।
सिन्धु संस्कृति का पर्व ‘ट्रीजड़ी’ का शाब्दिक अर्थ है तीज़। ट्रीजड़ी एक पारंपरिक सिन्धी त्योहार है, यह केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि प्रकृति और परंपरा का मिलन बिंदु है। जिसमें अखंड सौभाग्य और पति की लंबी आयु के लिए सिन्धी समाज की महिलाओं द्वारा उपवास रखा जाता है। यह त्योहार सिन्धी समाज में बहुत महत्वपूर्ण है और इसे बड़े उत्साह, श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
सिन्धी समुदाय का ट्रीजड़ी (तीजड़ी) पर्व भाद्रपद कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। अमूमन यह त्योहार रक्षाबंधन के तीन दिन बाद मनाया जाता है। इस दिन सिन्धी समाज की महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं।
ट्रीजड़ी के दिन सिन्धी समाज की महिलाएं व्रत रखती हैं और ट्रीजड़ी माता की पूजा करती हैं। वे अपने पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य के लिए प्रार्थना करती हैं और भगवान से आशीर्वाद मांगती हैं।
दिनांक 12 अगस्त 2025 को सिन्धी समाज का ट्रीजड़ी (तीजड़ी) पर्व मनाया जायेगा दिनांक 11 अगस्त 2025 को परंपरा के अनुसार इस पर्व की पूर्व संध्या पर सिन्धी समाज की माताएं, बहनें एवं बेटियां हाथों में मेंहदी लगायेंगी और दिनांक 12 अगस्त को सूर्योदय के पूर्व प्रात: काल 4 बजे उठकर स्वलपाहार करके असुर मनाकर व्रत आरंभ करेंगी।
सिन्धी समाज की महिलाएं अपने धार्मिक पर्व परंपरा के अनुसार पति की दीर्घायु के लिए ट्रीजड़ी (तीजड़ी) पर्व में व्रत रखती है। अविवाहित युवतियां भी अच्छा वर मिलने की कामना के साथ उपवास रखती है।
यह पर्व करवा चौथ की तरह ही मनाया जाता है। सिन्धी समाज की महिलाएं सूर्योदय के पूर्व प्रात: काल तड़़के चार बजे उठकर स्वल्पाहार करती है जिसे सिन्धी समाज में असुर करना कहा जाता है और इस प्रकार से व्रत की शुरुआत की जाती है।
ट्रीजड़ी (तीजड़ी) पर्व भाद्र माह के कृष्णपक्ष की तृतीया को मनाया जाता है।
सिन्धी समाज की महिलाएं इस उपवास को रखकर और चंद्रमा को देखकर व्रत का परायण करती है। व्रत रखने वाली महिलाएं रात को हाथों में मेंहदी लगाती है। सूर्योदय से पूर्व प्रात: काल भोर सुबह में चार बजे उठकर महिलाएं स्वलपाहार करती है, जिसे सिन्धी समाज में असुर करना कहा जाता है। इसके बाद रात में चांद देखकर अर्ध्य (अर्ग) देकर व्रत पूरा करती है।
दोपहर के वेले में कुल ब्राम्हण के यहां मंदिर में अथवा सिन्धी धर्मशाला में ट्रीजड़ी (तीजड़ी) माता (सप्त अनाज की अंकुरित भोजली) को झूला झूलाया जाता है और झूला झूलाने की रस्म अदा की जाती है। शाम को मंदिर अथवा सिन्धी धर्मशाला में ही ट्रीजड़ी (तीजड़ी) माता की कथा सुनकर दीपक प्रज्जवलित किया जाता है। कथा सुनने के बाद चंद्रमा जी को अर्ध्य (अर्ग) देना आवश्यक है। अगर मानसून की बारिश अथवा खराब मौसम की वजह से यदि चंद्रमा जी बादलों में छुपे रहते है और यदि चंद्रमा नही निकलता है तो पत्नि, पति परमेश्व़र की पूजा के बावजूद भी व्रत नही खोलती है।
ट्रीजड़ी पर्व आस्था, विश्व़ास, परंपरा और समाजशास्त्र का एक अदभुत संगम है। सिन्धी समाज की सांस्कृतिक पहचान ट्रीजड़ी पर्व सिन्धु गौरव की आत्मा है।

करवा चौथ की तरह ही सिन्धी समाज में ट्रीजड़ी (तीजड़ी) व्रत रखा जाता है। पति की लंबी आयु की कामना के लिए महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। जिन युवतियों की शादी तय हो जाती है वह भी इस व्रत को रखती है। अविवाहित युवतियां भी अच्छा वर मिलने की कामना के साथ निर्जला उपवास रखती है। शाम को मंदिर अथवा सिन्धी धर्मशाला में समाज की महिलाएँ एकत्रित होती है जहां कुल ब्राम्हण द्वारा ट्रीजड़ी (तीजड़ी) व्रत की कथा सुनाकर पर्व के महत्व को समझाया जाता है। पति की दीर्घायु एवं उत्तम स्वास्थ्य की कामना के लिए रखे व्रत को पूरा करने महिलाएं श्रृंगार कर चंद्रमा जी को अर्द्ध (अर्ग) देने के बाद प्रसाद ग्रहण कर व्रत परायण करती है।
सिन्धी समाज की संस्कृति में प्रकृति, परंपरा और पूजा का जो त्रिवेणी संगम है वह इस पर्व में मुखरित होता है। हालांकि इस पर्व में दो परम्पराएं प्रथम सूर्योदय के पूर्व प्रात: काल चार बजे असुर करना एवं दूसरा रात्रि में चंद्रमा के दर्शन नही होने की दशा में उसे अर्ध्य (अर्ग) नही दे सकना और व्रत का नही खोला जा सकना। वर्तमान प्रगतिशील दौर में एक ऐसी रुढ़िवादी प्रथा है, जिस पर सिन्धी समाज को चिंतन, मनन अवश्य करना चाहिए।
सिन्धी समाज की समस्त माताओं बहनों को उनके इस कठोर व्रत पर कोटि-कोटि वंदन..अभिनंदन…
