बरमकेला (सारंगढ़-बिलाईगढ़):
बरमकेला ब्लॉक अंतर्गत ग्राम पंचायत सहजपाली में विकास की आड़ में हो रहे भ्रष्टाचार का चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। जनपद पंचायत के अधिकारियों द्वारा गठित जांच टीम की रिपोर्ट ने पंचायत की उस परत को उधेड़ा है जिसे अब तक बड़ी ही चालाकी से ढका गया था। जांच में सामने आया है कि सरपंच सत्य घनश्याम इजारदार द्वारा अपने ही पति के नाम पर फर्जी वेंडर बिल बनाकर राशि का आहरण किया गया। सबसे हास्यास्पद बात यह रही कि इस पूरे प्रपंच को पंचायत सचिव की मिलीभगत से ‘वास्तविकता की मोहर’ लगाकर वैध ठहराने की कोशिश की गई।
फर्जी बिल और फर्जी शील, जांच में हुआ खुलासा
जांच टीम को दी गई दस्तावेजों की सत्य प्रतिलिपि पर जब नज़र गई तो वहां ‘सत्य’ की जगह ‘सत्यता से परे झूठ’ ने कब्जा कर रखा था। फर्जी वेंडर बिल, और सचिव द्वारा लगाई गई नकली शील (मुहर) इस बात का प्रमाण थी कि ‘गांव की भलाई’ के नाम पर ‘परिवारिक उन्नति योजना’ बड़ी चतुराई से संचालित हो रही थी।
सरपंच सत्य घनश्याम इजारदार द्वारा अपने ही पति के नाम से बिल प्रस्तुत करना यह साबित करता है कि पंचायत अब ‘लोक सेवा केंद्र’ नहीं बल्कि ‘घर सेवा केंद्र’ बन गई है।
गांव की आंखों में धूल, पंचायती में खेल चल रहा फूल
ग्रामवासी वर्षों से सोचते रहे कि पंचायत द्वारा चलाए जा रहे निर्माण और विकास कार्य उनकी भलाई के लिए हो रहे हैं, लेकिन अब यह स्पष्ट हो चुका है कि सरपंच महोदय ने अपनी सरपंची को ‘परिवारिक व्यावसायिक प्रतिष्ठान’ में तब्दील कर दिया है।
पांच वर्षों का हिसाब मांग रही है व्यवस्था
गांववालों का एक बड़ा सवाल यह है कि – “पिछले 5 वर्षों में कितने ऐसे बिल बनाकर पैसे का आहरण किया गया?” जांच टीम की रिपोर्ट से केवल एक मामला उजागर हुआ है, लेकिन इसके पीछे छिपे सैकड़ों वाउचर, सैकड़ों दस्तावेज, और शायद लाखों रुपये की लूट की कहानी अभी भी जांच के इंतज़ार में है।
क्या यह केवल एक ‘त्रुटि’ थी या सुनियोजित ‘भ्रष्टाचार का अभियान’? इसका जवाब केवल धारा 40(ग) में ही नहीं, बल्कि अब धारा 92 की विस्तृत जांच में ही मिलेगा।

अब कार्रवाई की ज़रूरत, ना कि सिर्फ जांच की फाइलें
गांव के जागरूक नागरिकों और जनप्रतिनिधियों की मांग है कि इस मामले को सिर्फ जांच तक सीमित न रखा जाए, बल्कि संबंधित दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए। धारा 92 के अंतर्गत विशेष जांच टीम गठित कर बीते पांच वर्षों के समस्त भुगतान, वाउचर, बिल, निर्माण कार्यों की विस्तृत ऑडिट की जाए।
यह आवश्यक है कि ऐसे लोगों को पंचायत की सेवा से बाहर किया जाए जो जनकल्याण के बजाए ‘स्वजन कल्याण’ में जुटे हैं।
निष्कर्ष:
सहजपाली का यह मामला न केवल भ्रष्टाचार का आईना है बल्कि यह भी दिखाता है कि अगर समय रहते अधिकारियों की आंखें न खुलतीं, तो शायद गांव में वर्षों तक ‘विकास’ केवल सरपंच के घर की चारदीवारी में सिमटा रह जाता। अब देखना यह है कि ‘प्रशासन की कलम’ इस काले कारनामे को कैसे सुधारती है – क्या सच्चाई को न्याय मिलेगा या फिर यह फाइल भी किसी कोने में धूल फांकती रहेगी?
भरष्टाचार में लिप्त सरपंच अब अपने पति घनश्याम इजरदार को राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी की सदस्यता दिलाने में लगी है ताकि उनके भरष्टचार की खुली किताब को आम जन को पढ़ने से रोका जा सके और क्या सत्तारूढ़ पार्टी सदस्य बना कर उनके इस राजनीतिक नीति में साथ देगी या भ्रष्टाचार को उजागर करने में आम जन का साथ देगी ये प्रश्न आने वाला समय बताएगा कि समय की करवट क्या होगी देखना होगा कि घनश्याम इजारदर की नीति चिट भी मेरी पट भी मेरी की नीति कहा तक सफल होती है
